पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) के पहले सेनाध्यक्ष थे टिक्का खान (Tikka khan), जो पाकिस्तानी सेने के 4-स्टार जनरल थे, उनका जन्म 10 फरवरी 1915 को रावलपिंडी के पास एक गाँव में हुआ था. टिक्का खान ने देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से अपनी पढ़ाई पूरी की थी और वो 1935 में ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए थे. साल 1940 तक आते आते वो कमीशन अधिकारी बन गए और फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने जर्मनी के खिलाफ युद्ध लड़ा था. लेकिन जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो टिक्का खान पाकिस्तान चले गए और वहां की सेना के प्रमुख बने. वहीं उनका सबसे क्रूर रूप साल 1971 में देखने को मिला.

साल 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ था लेकिन उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी. दरअसल, साल 1971 से पहले बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था और पूर्वी पाकिस्तान था, जहां के लोग पाकिस्तानी के आजादी चाहते थे. ऐसे में पाकिस्तान की सरकार ने सभी तरह के विद्रोह को कुचलने के लिए सैना को आगे किया. यहां से टिक्का खान की कहानी शुरू होती है. टिक्का खान ने पूर्वी पाकिस्तान के रास्ते पर सीधे सैन्य अभियान शुरू किया, जिसे 'ऑपरेशन सर्चलाइट' नाम दिया गया.
'ऑपरेशन सर्चलाइट' के तहत टिक्का खान के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने जो किया, उसे इतिहास शायद ही भूल पाए. पूर्वी पाकिस्तान में हजारों लोग मारे गए. एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया कि ढाका में एक रात में सात हजार लोग मारे गए थे और यह सब टिक्का खान के इशारों पर हुआ था. इस दौरान न बच्चे, न बूढ़े और न औरतें, कोई भी नहीं बख्शा गया.
बांग्लादेश के इस नरसंहार पर रॉबर्ट पेन ने एक किताब लिखी है, इस किताब में उन्होंने इस बात का दावा किया है कि साल 1971 में केवल 9 महीने के अंदर बांग्लादेश में लाखों महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया था. इस घटना के टाइम पत्रिका ने टिक्का खान को 'बांग्लादेश का कसाई' कहा था.
बांग्लादेश आजाद हुआ तो टिक्का खान पूरी दुनिया में बदनाम हो गए. टिक्का पाकिस्तानी सेना के अधिकारी थे लेकिन पाकिस्तान की अवाम ने भी उसके कार्यों को गलत बताया, लेकिन इसके बावजूद, पाकिस्तानी सेना में उसकी पैठ मजबूत हो गई. उनकी पदोन्नति हुई और 3 मार्च 1972 को वे पहले पाकिस्तानी सेना प्रमुख बने. उन्होंने लगभग चार वर्षों तक इस पद पर रहे और उसके बाद सेवानिवृत्त हुए. 28 मार्च 2002 को 87 साल की उम्र में रावलपिंडी में उनका निधन हो गया.
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